

आशीष निर्विरोध महासंघ अध्यक्ष बने, हिमांशु और दीपक की रणनीति ने लिखी जीत की इबारत
नैनीताल, 29 सितम्बर 2025।
कुमाऊँ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में इतिहास ने एक बार फिर खुद को दोहराया है।
2014 में हिमांशु कबड़वाल, और अब 2025 में उनके छोटे भाई आशीष कबड़वाल — ठीक 11 साल बाद महासंघ अध्यक्ष पद पर कबड़वाल परिवार का परचम एक बार फिर लहराया है।
राजनीतिक गलियारों में इस अद्भुत संयोग को ‘11 का जादू’ कहा जा रहा है।
👉 एक भाई हिमांशु, एक भाई आशीष — दोनों मिलकर भी ‘11’।
👉 और ठीक 11 साल बाद, भाइयों की इस ऐतिहासिक जीत ने छात्र राजनीति में नया अध्याय रच दिया।
यह जीत केवल चुनावी सफलता नहीं, बल्कि एक परिवार की विरासत और राजनीतिक परंपरा का शानदार उदाहरण है।
कहा जा रहा है कि दोनों भाइयों की विजय उनके स्वर्गीय पिता श्री प्रमोद कबड़वाल के सपनों और आदर्शों को साकार करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
✨ किसान परिवार से निकला नेतृत्व का सितारा
हल्दूचौड़ के एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से आने वाले आशीष कबड़वाल ने छात्र राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई है।
डीएसबी कैंपस नैनीताल से शिक्षा प्राप्त कर रहे आशीष ने छात्र हितों की आवाज़ को बुलंद करते हुए जनसमर्थन और भरोसे की ताक़त से इस मुकाम को हासिल किया।
🤝 रणनीति और भाईचारे की तिकड़ी
इस जीत के पीछे केवल आशीष का परिश्रम ही नहीं, बल्कि उनके दो मजबूत स्तंभ भी खड़े रहे —
पूर्व महासंघ अध्यक्ष हिमांशु कबड़वाल (2014)
छात्र नेता दीपक सिंह बिष्ट
दीपक ने पिछले एक दशक में न सिर्फ़ खुद छात्र राजनीति में पहचान बनाई, बल्कि कई नए नेताओं को भी गढ़ा। हाल ही में हुए मेयर चुनाव में भी उनकी निर्णायक भूमिका चर्चा का विषय रही। वहीं, हिमांशु की राजनीतिक समझ और अनुभव ने इस चुनाव को दिशा और धार दी।
विशेषज्ञों का मानना है —
“आशीष की निर्विरोध जीत, हिमांशु के अनुभव और दीपक की रणनीति का अनूठा संगम है, जिसने इस चुनाव को भाईचारे और मित्रता की ताक़त का प्रतीक बना दिया है।”
📌 एक ऐतिहासिक परंपरा
कैंपस का यह चुनाव अब केवल पद की लड़ाई नहीं रहा, बल्कि एक लेगेसी का प्रतीक बन गया है।
2014 में शुरू हुई यह यात्रा अब 2025 में आशीष की जीत के साथ नए युग में प्रवेश कर चुकी है।
छात्रों का कहना है —
👉 “कबड़वाल परिवार का नेतृत्व अब छात्र राजनीति का चेहरा बन चुका है।”
🔮 आगे की तस्वीर
विशेषज्ञ मानते हैं कि महासंघ अध्यक्ष के रूप में आशीष की निर्विरोध जीत केवल एक शुरुआत है।
आने वाले वर्षों में यह नेतृत्व न सिर्फ़ कैंपस बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति को भी नई दिशा और ऊर्जा देगा।
:- नैनीताल कैंपस का यह चुनाव अब छात्रसंघ तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भाईचारे, विरासत और रणनीतिक राजनीति की सबसे बड़ी मिसाल बन गया है।


