IPS Success Story: यूपीएससी सिविल सेवा को पास करना कई युवाओं का सपना होता है। आज हम आपको झारखंड के रहने वाले इंद्रजीत महथा की कहानी बताएंगे, जिनके पिता उनकी तैयारी के लिए किडनी बेचने तक को तैयार थे। वहीं, इंद्रजीत ने रद्दी से किताबें खरीदकर पढ़ाई की और अपने सिविल सेवा परीक्षा को पास कर अधिकारी बन गए।
झारखंड :- देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में शामिल है यूपीएससी सिविल सेवा, जिसके लिए हर साल लाखों युवा सपने सजोते हैं। हालांकि, कुछ ही लोगों का सपना पूरा हो पाता है। क्योंकि, यह परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में शामिल है। ऐसे में न इसे पास करना आसान है और न ही इसकी तैयारी आसान है। हालांकि, कुछ युवा होते हैं, जो जब तक अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेते, तब तक वे नहीं रूकते हैं। आज हम आपको इंद्रजीत महथा की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने गरीबी में अपना जीवन बिताया। उनके पिता उनकी तैयारी के लिए किडनी बेचने तक को तैयार थे। वहीं, इंद्रजीत ने रद्दी से किताबों को खरीदकर तैयारी की और अपने लक्ष्य को हासिल किया। इंद्रजीत की कहानी निश्चित ही आप लोगों को प्रभावित कर सकती है।
शिक्षक से पूछा क्या होता है डीएम
मूलरूप से झारखंड के रहने वाले इंद्रजीत महथा जब स्कूल में पढ़ते थे, तो उनकी किताब में जिला प्रशासन को लेकर एक पाठ था। इसे लेकर जब उन्होंने अपने शिक्षक से सवाल किया कि जिले का सबसे बड़ा अधिकारी कौन होता है, तो उन्हें डीएम के बारे में पता चला। तब से उन्होंने बड़े होकर जिलाधिकारी बनने का निर्णय ले लिया था।
किसान पिता ने बेटे की पढ़ाई के लिए बेचा खेत
इंद्रजीत के पिता किसान हैं। ऐसे में परिवार की आर्थिक हालत ज्यादा मजबूत नहीं थी। पिता प्रेम कुमार सिंह के पास घर की जीविका चलाने के लिए एकमात्र खेत ही साधन था। हालांकि, बेटे को पढ़ाने के लिए रुपयों की तंगी की वजह से उन्हें अपना खेत भी बेचना पड़ा।
इंद्रजीत का परिवार मिट्टी के घर में रहता था
इंद्रजीत के घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। परिवार मिट्टी के घर में रहा करता था, जिसकी छत खपरैल से बनी हुई थी। एक समय ऐसा भी आया जब घर में दरारें आ गई थी। ऐसे में मां और दोनों बहनों को घर छोड़कर मामा के घर जाना पड़ा। लेकिन, इंद्रजीत घर छोड़कर नहीं गए और अपने पिता के साथ मजदूरी कर एक व्यक्ति की सहायता से खुद ही मकान बनाने में जुट गए थे।
रद्दी किताबों से पढ़ते थे इंद्रजीत
इंद्रजीत ने एक मीडिया को दिए अपने साक्षात्कार में कहा कि घर की आर्थिक हालत इतनी खराब थी कि नई किताबों को खरीदने के लिए पैसे भी नहीं हुआ करते थे। ऐसे में जो बच्चे रद्दी में अपनी पुरानी किताबों को बेच दिया करते थे, इंद्रजीत उन्हें रद्दी के भाव में खरीदकर किताबों के पुराने संस्करण से ही अपनी पढ़ाई पूरी करते थे। किसी तरह उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और दिल्ली पहुंच यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी थी। वहीं, जब पिता ने इंद्रजीत की तैयारी के लिए अपने खेत का अधिकांश हिस्सा बेचा, तो इंद्रजीत के सामने सफलता पाने का अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
जब पिता ने कहा पढ़ाई के लिए बेच सकता हूं किडनी
इंद्रजीत जब अपने पहले प्रयास में असफल हो गए, तो पूरा परिवार निराश हो गया। हालांकि, पिता ने हिम्मत नहीं हारते हुए इंद्रजीत को कहा कि उन्होंने अभी तक इंद्रजीत की पढ़ाई के लिए सिर्फ खेत बेचा है। यदि भविष्य में जरूरत पड़ी तो वह अपनी किडनी भी बेचने के लिए तैयार हैं। इन बातों से इंद्रजीत को हौंसला मिला और उन्होंने अपनी तैयारी को जारी रखा। उन्होंने साल 2008 में फिर से पूरी तैयारी के साथ परीक्षा दी और इस साल परीक्षा में 100वां रैंक प्राप्त कर अधिकारी बन गए।
अभ्यर्थियों को देते हैं यह सलाह
इंद्रजीत अपनी सफलता के बाद युवाओं को परीक्षा के लिए प्रेरित करते हैं। वह कहते हैं, ”इच्छा करने से कुछ नहीं होता, बल्कि इरादे से होता है। इच्छा हर व्यक्ति करता है, लेकिन जो व्यक्ति मजबूत इरादे रखता है, सफलता उसे ही मिलती है। इंद्रजीत कहते हैं कि संघर्ष को कभी दुख नहीं समझना चाहिए, क्योंकि दुख वह है, जिसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं होती। वहीं, संघर्ष इंसान को सुदृढ़ बनाता है।